Tuesday 8 November 2011

विवशता


अकसर लोगो को कहते पाया हे
झूठ के पांव नहीं होते
उसकी कोई मजबूरी रही होगी
जो सच न बताया उसने ।
शायद अपनों को दुःख न पहुंचे
यह सोच सच छुपाया होगा

3 comments:






  1. आदरणीया सुमन जी
    सस्नेहाभिवादन !

    अंतर्जाल-भ्रमण करते हुए आपके यहां पहुंच कर प्रसन्नता हुई…
    ख़ूबसूरत ब्लॉग ! सुंदर प्रविष्टियां !
    प्रस्तुत रचना भी अच्छी है …
    अपनों को दुःख न पहुंचे
    यह सोच' सच छुपाया होगा …

    वाह वाऽऽह्… !
    सच है , होती है विवशता …
    बहुत सारे सच छुपे ही रह जाते हैं …


    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. समय मिले तब पधारिएगा हमारे यहां भी …
    :)

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  3. शायद अपनों को दुःख न पहुंचे
    यह सोच सच छुपाया होगा ।

    सहमत हूँ...संवेदनशील पंक्तियाँ ...

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