कमल हो तुम
जब जब तेरी नादान हरकते देखती हूँ
खुद को यह सोच मना लेती हूँ
कि तेरा कोई दोष नहीं आखिर
कमल कीचड़ मे ही तो खिलता हे .
तेरी हर अच्छाई उस कमल की तरह
जो सिर्फ खुशबू और सुन्दरता देती ,
फिर भला मे कीचड़ पर पत्थर कैसे मारूं
जानती हूँ कि कुछ छींटे तेरी और कुछ
मेरी तरफ भी आयेंगे .
बहुत ही प्यारी रचना ,बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteकमल सा बनकर भी महकना सरल नहीं
ReplyDeleteफिर भी खुशबू कभी महकना नहीं छोड़ता
asb