Wednesday 14 May 2014

सृजन

 सृजन  ईश्वर की  सबसे खूबसूरत क्रिया
  आशाये  और  सपने इसमें
जैसा बोओगे  वैसा काटोगे
संदेश  छिपा हर  एक सृजन  मे।
हर काम मे अंजाम छिपा हें
इसे गर समझ जाओगे
प्रकृति  की तरह खुद भी
पावन  सुन्दर हो जाओगे--आभा



Sunday 6 April 2014

फूल होते ही हैं ऐसे

मुझे भाते हैं फूल सभी 
हर रंग में ,हर रूप में 
ये अक्सर दिलों का मौसम 
बदल खुशनुमा कर देते हैं !
झुण्ड मे खिले तो मन को 
 इंद्रधुनष बना  देते हैं 
  और गर खिले निर्जन वन में 
   स्वाभिमान  से भरे नजर आते हैं  !
  फूल अगर सूख  भी जाये 
   तो क्या महकना नहीं छोड़ते 
   नियति में तय है उनकी
   जब  तक रहना देना ही देना ! 


Wednesday 1 January 2014

Life is a journey

 Life is a beautiful journey
But ups and down are there.
 Faith keep moving life
 I know God is there .
 Some days are bad some are good
  But smile should be there
As we know all time
God is always here.

Sunday 15 July 2012

                                                 क्या यही जीवन हे




  सब कुछ पा लेने के बाद
 या सब कुछ खो देने के बाद
सब क्यों हो जाता हे एक समान
 महज एक शून्य ही नजर आता हे
जहाँ बार बार फिर तय  हे
एक नया सफ़र ,एक नयी शुरुआत
  शायद इसी  का नाम जीवन हे

Tuesday 27 December 2011

कमल हो तुम

                                          कमल हो तुम 
जब जब तेरी नादान हरकते देखती हूँ
खुद को यह सोच मना लेती हूँ
कि तेरा कोई दोष नहीं आखिर
कमल कीचड़ मे ही तो खिलता हे .






















तेरी हर अच्छाई उस कमल की  तरह
जो सिर्फ खुशबू और सुन्दरता देती ,
फिर भला मे कीचड़ पर पत्थर कैसे  मारूं
जानती हूँ कि कुछ छींटे तेरी और कुछ

मेरी तरफ भी आयेंगे .

Thursday 15 December 2011

धार्मिक पुस्तक क्यों पढ़ी जाएँ

कभी कभी छोटी सी बात भी कुछ बहुत अच्छे सन्देश दें जाती हे . बहुत पहले एक कहानी सुनी थी जिसे साझा करने का मन हो रह हे . किसी गावं मे एक बच्चा अपने दादाजी के साथ रहता और रोज उनको भगवत गीता का पाठ करते देखता .दादाजी जब पाठ कर रहे होते तो शांत दिखते लेकिन उसके बाद यदा कदा गुस्सा भी करते दिख जाते .
 एक दिन बच्चे ने दादाजी से पूछा की आप कब से इस पुस्तक को पढ़ते हो ? दादाजी ने कह कोई २० साल से लगातार  मै गीता का पाठ कर रहा हूँ . इस पर बच्चे ने बहुत मासूमियत से प्रश्न किया अगर आपका गुस्सा ऐसे ही रहना हे तो फिर इस पाठ का क्या फायदा ? आखिर क्यों आप रोज पाठ और पूजा करके समय ख़राब करते हैं ?
   दादाजी ने बच्चे को कह ठीक हे मै तुमको जबाब दूंगा पर पहले तुमको एक काम करना होगा . वो सामने जोह टोकरी रखी हुई हे उसमे पास की नदी से पानी ले आयो .बच्चे ने बांस की गन्दी सी टोकरी उठाई और पास नदी मै पानी भरने चल दिया . एक बार , दो बार ,बार बार उसने टोकरी को नदी मे डाल कर पानी भरा पर जब तक वो घर मे आता टोकरी खाली हो जाती .आखिर उसने गुस्से मे टोकरी को एक कोने मे फेका और कहने लगा इससे करके कोई फायदा नहीं .आप तो मुझे जबाब के बजाय उल्टे काम मे लगा रहे..भला बांस की टोकरी मे भी कभी पानी भर सकता हे इसमे तो जगह जगह छेद हैं .
तब दादाजी ने उसे प्यार से चल कर टोकरी देखने को कहा. बच्चे ने टोकरी हाथ मे ली और कहा इसमे पानी कभी भर ही नहीं सकता आप भी नहीं भर सकते .दादाजी बोले गौर से देखो टोकरी मे तुमको क्या दिख रहा ? बच्चा बोला कुछ भी नहीं .तब दादाजी ने कहा याद करो जब तुमने टोकरी उठाई तब यह कैसी थी?
कुछ नर्म शब्दों मे बच्चा बोला अरे तब तोह यह कोयले से पूरी तरह कलि और गन्दी थी और अब बिलकुल साफ़ दिखाई दे रही हे.
दादाजी बोले तुमको अब समझ आया की बेशक टोकरी मे पानी नहीं भर पाया लेकिन उसकी गंदगी जरुर दूर हो गयी . इन्सान का मन भी कुछ इस टोकरी के ही समान हे. उसके मन मे भी गंदगी जम जाती हे ,अगर हम रोज किसी भी धार्मिक पुस्तक का पठन करते हें पूजा करते हे तोह कुछ देर  के लिए ही सही पर अपने मन को साफ़ करने का मौका जरुर पा लेते हे .इसलिए रोज का अभ्यास हमको इन्सान बनने और इंसानियत जिन्दा रखने मे मदद करता हे .

  कहानी की शिक्षा इतनी भर हे कि धार्मिक पुस्तक जादू कि छड़ी कि तरह एकदम किसी को भी नहीं बदल सकती पर धीरे धीरे अभ्यास करके अच्छे बुरे कि समझ जरुर आ जाती हे  .इसलिए धार्मिक पुस्तक का पठन कभी निष्फल नहीं जाता .

Tuesday 8 November 2011

विवशता


अकसर लोगो को कहते पाया हे
झूठ के पांव नहीं होते
उसकी कोई मजबूरी रही होगी
जो सच न बताया उसने ।
शायद अपनों को दुःख न पहुंचे
यह सोच सच छुपाया होगा