Thursday 15 December 2011

धार्मिक पुस्तक क्यों पढ़ी जाएँ

कभी कभी छोटी सी बात भी कुछ बहुत अच्छे सन्देश दें जाती हे . बहुत पहले एक कहानी सुनी थी जिसे साझा करने का मन हो रह हे . किसी गावं मे एक बच्चा अपने दादाजी के साथ रहता और रोज उनको भगवत गीता का पाठ करते देखता .दादाजी जब पाठ कर रहे होते तो शांत दिखते लेकिन उसके बाद यदा कदा गुस्सा भी करते दिख जाते .
 एक दिन बच्चे ने दादाजी से पूछा की आप कब से इस पुस्तक को पढ़ते हो ? दादाजी ने कह कोई २० साल से लगातार  मै गीता का पाठ कर रहा हूँ . इस पर बच्चे ने बहुत मासूमियत से प्रश्न किया अगर आपका गुस्सा ऐसे ही रहना हे तो फिर इस पाठ का क्या फायदा ? आखिर क्यों आप रोज पाठ और पूजा करके समय ख़राब करते हैं ?
   दादाजी ने बच्चे को कह ठीक हे मै तुमको जबाब दूंगा पर पहले तुमको एक काम करना होगा . वो सामने जोह टोकरी रखी हुई हे उसमे पास की नदी से पानी ले आयो .बच्चे ने बांस की गन्दी सी टोकरी उठाई और पास नदी मै पानी भरने चल दिया . एक बार , दो बार ,बार बार उसने टोकरी को नदी मे डाल कर पानी भरा पर जब तक वो घर मे आता टोकरी खाली हो जाती .आखिर उसने गुस्से मे टोकरी को एक कोने मे फेका और कहने लगा इससे करके कोई फायदा नहीं .आप तो मुझे जबाब के बजाय उल्टे काम मे लगा रहे..भला बांस की टोकरी मे भी कभी पानी भर सकता हे इसमे तो जगह जगह छेद हैं .
तब दादाजी ने उसे प्यार से चल कर टोकरी देखने को कहा. बच्चे ने टोकरी हाथ मे ली और कहा इसमे पानी कभी भर ही नहीं सकता आप भी नहीं भर सकते .दादाजी बोले गौर से देखो टोकरी मे तुमको क्या दिख रहा ? बच्चा बोला कुछ भी नहीं .तब दादाजी ने कहा याद करो जब तुमने टोकरी उठाई तब यह कैसी थी?
कुछ नर्म शब्दों मे बच्चा बोला अरे तब तोह यह कोयले से पूरी तरह कलि और गन्दी थी और अब बिलकुल साफ़ दिखाई दे रही हे.
दादाजी बोले तुमको अब समझ आया की बेशक टोकरी मे पानी नहीं भर पाया लेकिन उसकी गंदगी जरुर दूर हो गयी . इन्सान का मन भी कुछ इस टोकरी के ही समान हे. उसके मन मे भी गंदगी जम जाती हे ,अगर हम रोज किसी भी धार्मिक पुस्तक का पठन करते हें पूजा करते हे तोह कुछ देर  के लिए ही सही पर अपने मन को साफ़ करने का मौका जरुर पा लेते हे .इसलिए रोज का अभ्यास हमको इन्सान बनने और इंसानियत जिन्दा रखने मे मदद करता हे .

  कहानी की शिक्षा इतनी भर हे कि धार्मिक पुस्तक जादू कि छड़ी कि तरह एकदम किसी को भी नहीं बदल सकती पर धीरे धीरे अभ्यास करके अच्छे बुरे कि समझ जरुर आ जाती हे  .इसलिए धार्मिक पुस्तक का पठन कभी निष्फल नहीं जाता .

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर प्रेरणादायक कथा है सखी ..और सही कहा हमारा मान उस टोकरी के सामान ही है ..सत्संग और रोज का अच्छी पुतकों क aअभ्यास हमको इन्सान बनने और इंसानियत जिन्दा रखने मे मदद करता है .

    और यदि उस टोकरी से रोज पानी भरने कि चेष्टा की जाये तो एक समय जरुर आएगा जब टोकरी कि सींके लगातार पानी में रहने से फूल जाएँगी और उसमे पानी समां जायेगा ...:)कहने का तात्पर्य हमें अच्छे व्यक्ति का संग व अच्छी साहित्य का पठन करते रहना चाहिए ..:)शक्रिया सखी !!

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