Monday, 25 April 2011


रेत के टीले ठहरे कितने दिन
लहरें आई और बहा ले चली
यादों के टीले उमर भर को
समय की तक एक न चली .
यह ठीक है की समय और
रेत मे बहुत समानता है
समय भी रेत की तरह
पल भर मे फिसल जाता है
पर यादों के सफ़र को
कोई रोक नहीं पता है.

5 comments:

  1. आभा जी आपकी लेखनी ने यादों को जो गति दी है वो स्वागत योग्य है और सराहनीय है

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  2. हौसला अफजाही का बहुत बहुत शुक्रिया

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  3. यश जी स्वागत है

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  4. धार्मिक यात्रा का यादगार संस्मरण है, आपकी जितनी भी लेखनी की प्रशंसा की जाये कम ही है....."सुमन जी" !!

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